river view: गंगा नदी के पार्श्‍व पहाड़ों पर घटाओं की अठखेलियां

रेलवे 19
नदी
पार कर सीधे काली कमलीवाला धर्मशाला पहुंचे। वर्तमान में रामझूला से नदी (river) पार पहुंचने के बाद सबसे पहले काली कमलीवाला धर्मशाला ही आती हैैै। बीकानेर से ऋषिकेश (rishikesh) जाने वाले अधिकांश श्रद्धालु गीता भवन में रुकते हैं। काली कमलीवाला धर्मषाला गीता भवन व परमार्थ भवन की कतार में एकदम नुक्कड़ पर है। धर्मशाला के गलियारे से सीधे गंगादर्शन किए जा सकते है। सामान रखने और मुहं हाथ धोने के बाद सभी ऋषिकेश भ्रमण पर निकल पड़े। यह रात 8-9 बजे के समय था। इस रास्ते पर काफी चहल-पहल थी। एक तरफ धर्मशालाओं की ठेठ तक कतार थी तो दूसरी तरफ गंगा नदी (river) । नदी में पानी बहने से उत्पन्न आवाज रात के समय दूर-दूर तक सुनी जा सकती हैै। कई ठेले लगे हुए थे। चाय, पकौड़े, बिस्किट, मनिहारी, फल आदि ठेलो पर सजे थे। कुछ लोगों ने टेबलें लगाकर भी सामान सजा रखा था। प्रत्येक ठेले पर लालटेन या केरोसिन भरी शीशी में कपड़े की बाती जलाकर रोशनी की व्यवस्था की गई थी। रात्रिकाल में ठेलों की कतार पर इस रोशनाई वाकई बाजार गुलजार हो रहा था। दूसरी तरफ कुछ बड़ी दुकानों, रेस्तराओं और भोजनालयों की लोटिया-लाइटें भी इसमें चार चांद लगा रही थी। एकाध किलोमीटर चलने के बाद हम लौट आए। सुबह हरिद्वार (haridwar) में भ्रमण, रेलगाड़ी में यात्रा और अब चहलकदमी से थकान हो गई। सब जल्दी सो गए। सुबह चिड़ियों व पक्षियों की चहचहाट से आंख खुली। सुबह-सवेरे का दृश्य देखकर मैं विस्मित रह गया। धर्मशाला के प्रांगण की मुंडेर तीन फीट उंची थी। लगभग मेरी लम्बाई से भी पांच-छह इंच छोटी। मुंडेर के पार गंगा बहती दिखाई दे रही थी। गंगा के पाश्र्व में उंचे-उंचे पहाड़ और उन पर छाई गहरी काली-काली घटाएं। हवा के सहारे गतिशील इन बादलों को देख मन प्रफुल्लित हो उठा। एक तरफ गंगा, दूसरी तरफ पहाड़ और उन पर मंडराते बादल— किसी परिकथा की कल्पनाओं का अहसास करवा रहे थे। मंद-मंद बह रही बयार आंखों को शीतलता का अहसास करवा रही थी। मैं मुंडेर पर ठुड्डी टिकाए ऐसे मनोहारी दृश्य को अपलक देखता रहा। तभी बाई की आवाज आई, चाय तैयार है। बाई ने चाय के साथ नाश्ते में खजलियां और सक्करपारे दिए थे। इससे निपटकर मैं, भाई और पिताजी धर्मशाला के अंदर से बनी सीढ़ियां, जो सीधे नदी (river)किनारे तक बनी थी, उतर कर गंगा स्नान के लिए चले गए। ऋषिकेश में हरिद्वार की अपेक्षा गंगा का पानी ठण्डा था। स्नानादि से निवृत हो हम ऋषिकेश भ्रमण के लिए निकल पड़े। क्रमशः